ठौर नहीं हम बंजारों का।

ठौर नहीं हम बंजारों का।  

हम उगते सूरज के साथी
कुछ काम नहीं अँधियारों का
दिल ने चाहा वहीं गुजारे
ठौर नहीं हम बंजारों का।।

कभी भीड़ के साथ चले हैं
कभी भीड़ में चले अकेले
कभी सफर की गुमनामी थी
कभी सफर में लाखों मेले।
मेले के अँधियारे भाये
काम कहाँ तब उजियारों का
दिल ने चाहा वहीं गुजारे
ठौर नहीं हम बंजारों का।।

जिसको चाहा दिल से चाहा
अरु वादों का सत्कार किया
जो तस्वीर छपी इस दिल में
हमने उसको आकार दिया
कौन है अपना कौन पराया
काम नहीं निज व्यवहारों का
दिल ने चाहा वहीं गुजारे
ठौर नहीं हम बंजारों का।।

आज यहाँ कल कहाँ ठिकाना
सूना पथ राही अनजाना
पथ की पीर नयन से बरसे
दिल ने समझा दिल ने जाना
पग पग पथ पथ डटे रहे हम
पुष्पित पथ या अंगारों का
दिल ने चाहा वहीं गुजारे
ठौर नहीं हम बंजारों का।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
       10जुलाई, 2021

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