गीत मात्र शब्द नहीं है-
ये भावों की आकुलता है
कवि के उर की पीड़ा है ये
अंतस की ये व्याकुलता है।।
भावों का संग्राम छिड़ा जब
उर में जब हलचल सी आयी
जब पीड़ा को शब्द मिले हैं
गीत उकर पृष्ठों पर छाई
पृष्ठों पर अंकित ये बिंदू
भावों की ये विह्वलता है
गीत मात्र कुछ शब्द नहीं हैं
ये भावों की आकुलता हैं।।
बनते और बिगड़ते पल में
मिलते और बिछड़ते पल में
भावों का यूँ सागर उमड़े
पलकों से जैसे अश्रु बिछड़े
पलकों से जो भाव गिरे हैं
अश्रू नहीं वो विह्वलता है
गीत मात्र कुछ शब्द नहीं है
ये भावों की आकुलता है।।
हृद का मृदु का स्पंदन है ये
शब्दों का अनुबंधन है ये
पंक्ति पंक्ति भावों की क्रीड़ा
पीड़ा का अभिनंदन है ये
हिय पर अंकित शब्द नहीं भर
पल पल संचित भावुकता है
गीत मात्र कुछ शब्द नहीं है
ये भावों की आकुलता है।।
©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
13जुलाई, 2021
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