चाहत।
तुमको ही माँगा
चाहा है मैंने बस तुझे
तुझसे शुरू कर
तुझ तक ही जाऊँ
पाऊँ मैं बस इक तुझे।।
तेरी आशिकी में ही
जन्नत मिली है
तेरी बंदगी में ही
रहमत मिली है
जन्मों से चाहा मैंने जिसे
तुझमे मिला है वो मुझे।।
करता है दिल ये
बनकर घटायें
तुझको भिंगाऊँ
बनकर हवायें चूमूँ तुझे मैं
रूठो कभी तो तुमको मनाऊँ
खुद में समा ले तू मुझे।।
मेरी चाहतों ने
तुमको ही माँगा
चाहा है मैंने बस तुझे।।
©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
14जुलाई, 2021
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