तरुणाई का गीत।
मैं गीत कोई तरुणाई का
मन उपवन की बात लिखूँ
अरु गीत लिखूँ अमराई का।।
पुनगी पुनगी पीत पुष्प है
अंतस का नवगीत पुष्प है
मधुवन मधुवन सुरभित यौवन
गूँज रहा संगीत पुष्प है।
फसलों पर बाली आयी है
मौसम है ये अँगड़ाई का
दिल करता है आज लिखूँ
मैं गीत कोई तरुणाई का।।
मधुमय अधर सरस मन भावन
अंग अंग मादक रस पावन
रोम रोम मृदु मधुरस बरसे
हर्षित पुलकित मधुरिम जीवन।
रोम रोम में प्रीत जगी है
अंग अंग ऋतु अमराई का
दिल करता है आज लिखूँ
मैं गीत कोई तरुणाई का।।
नवल पुष्प से सुरभित उपवन
नख से शिख तक मादक यौवन
अधर अधर रक्तिम पुष्पित है
उर्मिल मन अरु पावन चुंबन
बहके मन या महके तन का
पुष्पच्छादित अँगनाई का
दिल करता है आज लिखूँ
मैं गीत कोई तरुणाई का।।
©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
15जुलाई, 2021
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें