टूटा तारा।

टूटा तारा।  

दूर निशा के कोलाहल में
लुक छिप करती रेखाएँ
खींच रही आकाश पटल पर
जाने कैसी सीमाएँ।
दूर गगन से बिछड़ रहा है
शायद किस्मत का मारा
टूट रहा है इक तारा।।

मन के सूने मौन गगन में
जाने कैसी हलचल है
पलकों के लुकछिप क्रंदन में
मिटता जीवन पलपल है।
पलकों से जो बिछड़ चला है
शायद किस्मत का मारा
टूट रहा है इक तारा।।

गिरा गगन से लुप्त हुआ वो
गिर पलकों से सुप्त हुआ वो
जिन लम्हों ने ध्वंस रचा है
उन लम्हों से कौन बचा है
लम्हों में जो बिखर चला है
टूटा उसका जीवन सारा
टूट रहा है इक तारा।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
       14जुलाई, 2021








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