पुण्य पथिक।
दिखता उम्मीदों का घेरा है
माना रात अँधेरी गहरी
पर आगे नया सवेरा है
अँधियारों के डर से लेकिन
दीपक नहीं बुझा करते हैं
जो पंथी हैं पुण्य पथिक हैं
थक कर नहीं रुका करते हैं।।
कभी सुना क्या बाधाओं ने
उम्मीदों का पथ रोका है
कभी सुना क्या कुंठाओं ने
जीवन बढ़ने से रोका है
बढ़े चले जो जीवन पथ पर
कभी नहीं झुका करते हैं
जो पंथी हैं पुण्य पथिक हैं
थक कर नहीं रुका करते हैं।।
घनी रात के अँधियारों में क्या
दीपक को बुझते देखा है
चाहे जितना घना कुहासा
क्या सूरज रुकते देखा है
सूरज के सह चलने वाले
बोलो कहाँ थका करते हैं
जो पंथी हैं पुण्य पथिक हैं
थक कर नहीं रुका करते हैं।।
रश्मि भोर की किरणें देखो
हौले से तन सहलाती हैं
उम्मीदों की किरण सुहाती
हौले से मन बहलाती हैं
उम्मीदों में पलने वाले
बरबस नहीं रुका करते हैं
जो पंथी हैं पुण्य पथिक हैं
थक कर नहीं रुका करते हैं।।
©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
12जुलाई, 2021
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