आस का आकाश।

आस का आकाश।  

चाहतों के व्योम में
आस के आकाश में
स्वप्न में अहसास में
मुक्त कुछ कुछ कह रही
राह अविरल चल रही।।

साँस की है गीतिका
प्यास की है भूमिका
मोक्ष के विश्वास में
गीत पल पल रच रही
राह अविरल चल रही।।

वेदना की है कथा
मौन भावों की व्यथा
शून्य में उपवास में
स्वयं से कुछ कह रही
राह अविरल चल रही।।

शब्द के उत्प्रास से
दर्द के अनुप्रास में
मुक्ति के आभास में
आह पग पग पल रही
राह अविरल चल रही।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        08जुलाई, 2021




कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

प्यार में पीर लें पीर को प्यार दें

 प्यार में पीर लें पीर को प्यार दें एक दूजे को हम इतना अधिकार दें, के प्यार में पीर लें पीर को प्यार दें। एक कसक सी न रह जाये दिल में कहीं, ...