इक सरल अनुवाद।
और जीवन की व्यथा का इक सरल अनुवाद मैं।।
यूँ लिखी सबने बहुत है जिंदगी की गीतिका
राह भी सबने दिखाई संग सबके प्रीत का
सत्य हैं सबके अलग पर मार्ग सबके एक हैं
चल रहे जिस पर सभी वो पंथ है पर जीत का।
ढूँढता हूँ पंथ में उस प्रीत का अनुनाद मैं
और जीवन की व्यथा का इक सरल अनुवाद मैं।।
सबकी अपनी है व्यथा सबके अपने रास्ते
कोई लिखता औरों पर कोई खुद के वास्ते
और कितनी बात कह दी छंद के आकार में
गीतों गज़लों में कही और कही व्यवहार में।
ढूँढता हूँ पंक्तियों में वो सकल संवाद मैं
और जीवन की व्यथा का इक सरल अनुवाद मैं।।
मौन मैं भी लिख रहा हूँ पंक्ति में अपनी व्यथा
सत्य मानो तुम इसे या फिर इसे मानो कथा
रोज लिखता हूँ यहाँ मैं जिंदगी की एक गजल
और देखा खुद को जब पलकों को पाया सजल।
ढूँढता हूँ पलकों में गीतों का अभिवाद मैं
और जीवन की व्यथा का इक सरल अनुवाद मैं।।
©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
08 मई, 2021
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें