नूतन प्रतिमान।

नूतन प्रतिमान।   

नवयुग का साक्षी बनने को
मौन अकेले आज चलाचल
स्थापित प्रतिमानों से आगे
तू नूतन प्रतिमान गढ़े चल।।

मानवता की व्यापक दृष्टी
भावों में तू छलकाए जा 
संकीर्ण भाव परे त्यागकर
सबको हँसकर अपनाए जा।।

कालखंड का उद्देश्य यही
तू नूतन पथ गढ़े चलाचल
नवयुग का साक्षी बनने को
तू नूतन प्रतिमान गढ़े चल।।

जन जन की पीड़ा को अपने
शब्दों में संयोजित करना
स्मृतियों के पुण्य लकीरों को
भावों में सुनियोजित करना।

हर हृद के भावों को पढ़कर
पुण्यश्लोक सम्मान गढ़े चल।
नवयुग का साक्षी बनने को
तू नूतन प्रतिमान गढ़े चल।।

नित प्रति जीवन संघर्षों की
विराट कहानी लिखता है
जैसी दृष्टी डालो जग पर
वैसा ही जग दिखता है।

तोड़ यहाँ के किंतु परंतु सब
तू नूतन अनुमान गढ़े चल।
नवयुग का साक्षी बनने को
तू नूतन प्रतिमान गढ़े चल।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        07मई, 2021







कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

पीर से पत्थरों को पिघलते हुए, देख पलकों के अश्रु वहीं रुक गये

पीर से पत्थरों को पिघलते हुए, देख पलकों के अश्रु वहीं रुक गये रह गयी कुछ कहानी कही अनकही, पृष्ठ पर कुछ लिखे कुछ लिखे ही नहीं। उम्र अपनी कहान...