चूल्हे में उल्लास।
चूल्हे में उल्लास कहाँ
घर की चकरी बंद पड़ी है
कैसा है वनवास यहाँ।।
पल पल कानों में जैसे
पदचाप सुनाई देती है
दूर दूर तक राहों में
बस आस दिखाई देती है।
आशाओं का झुरमुट है पर
सपनों का अवकाश यहाँ
मौन हुई है घर की चिमनी
चूल्हे में उल्लास कहाँ।।
भूखी प्यासी सड़क चली है
बंद गली थी आज खुली है
नन्हें नन्हें पैरों में भी
उम्मीदों की ओस घुली है।
पर पलकों के छाँव तले अब
आँसू को विश्राम कहाँ।
मौन हुई है घर की चिमनी
चूल्हे में उल्लास कहाँ।।
साँसों को आराम कहाँ अब
रह रह कर आती जाती हैं
इधर उधर फिरती रहती है
आराम कहाँ वो पाती है।
कितने घाव छुपा सीने में
राह चली अब मौन यहाँ।
मौन हुई है घर की चिमनी
चूल्हे में उल्लास कहाँ।।
इसका अंत कहीं तो होगा
मुक्त कंठ कभी तो होगा
कहीं मिलेगा ठौर ठिकाना
कोई तंत्र कहीं तो होगा।
जहाँ मिलेंगी खुशियाँ सारी
उम्मीदें औ उल्लास जहाँ
वहीं हँसेगी फिर से चिमनी
चूल्हे में उल्लास वहाँ।।
©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
03मई, 2021
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें