बसा ले मुझको।
अपने हाथों की लकीरों में बसा ले मुझको
अपनी पलकों के दरीचों में छुपा ले मुझको।
मैं कोई ख्वाब नहीं जो विखर जाऊंगा
दिल चाहे तेरा जब भी बुला ले मुझको।
तेरे गीतों तेरे नज्मों की गुजारिश हूँ मैं
अपने गजलों के मिसरों में बसा ले मुझको।
तेरी खामोशियाँ भी खिलखिला उठेंगी यहीं
अपने अधरों पे इकबार सजा ले मुझको।
बाद मुद्दत के जिंदगी महकी है "अजय"
अपना हमदम, हमराह बना ले मुझको।।
✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
21सितंबर,2020
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