मैं सजा दूंगा तेरी राहों को, जहां जाओगे
अब तुम ही कहो कुछ कि जाना है कहाँ।तुमसे हो करके शुरू तुम पे ही खत्म होती है
मेरी चाहत का कोई और फसाना है कहाँ।
लोग कहते हैं कि अंधा हूँ तेरी चाहत में
ढूंढ के देख लो मुझसा दीवाना है कहाँ।
तू ही मंजिल है मेरी, तू ही जुस्तजू मेरी
तेरी बाहों के सिवा मेरा ठिकाना है कहाँ।
चाहत यही अब बाहों में तेरी फ़ना हो जाऊं
तुझमें खोने का इससे बेहतर बहाना है कहाँ।।
✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
21सितंबर,2020
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