दिन बीते जाते हैं।
रह रह बीते जाते हैं
पैबंद लगा कर घावों को
रह रह सीते जाते हैं।
बीच भँवर में तूफानों के
जीवन कितनी बार फँसा
हर बार नए अंकुर फूटे
जीवन ये हर बार हँसा।
तोड़ भँवर की जंजीरों को
जीवन बढ़ते जाते हैं
पल-पल छिन-छिन दिन जीवन के
रह रह बीते जाते हैं।।
जो भटका राहों से अपनी
उसने सब कुछ खोया है
बिखरा जो इक बार यहां पर
फूट फूट कर रोया है।
दृढ़ता से जो डटा यहां पर
उम्मीदों को पाते हैं
पल-पल छिन-छिन दिन जीवन के
रह रह बीते जाते हैं।
अपनी हिम्मत औ ताकत से
आगे बढ़ते जाना तुम
अपने किस्मत की रेखों को
खुद से गढ़ते जाना तुम।
तपा आग में जितना जो भी
सूरज को छू पाते हैं
पल-पल छिन-छिन दिन जीवन के
रह रह बीते जाते हैं।।
✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
22सितंबर,2020
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