लम्हे कब आएंगे।



लम्हे कब आएंगे।     

लड़कपन के वो बीते दिन
ना जाने फिर कब आएंगे
गुजारे साथ  जो लम्हे
ना जाने कब फिर आएंँगे

अवसादों से घिरा  है गगन 
दर्द में जकड़ा आज चमन 
इससे छुटकारे की खातिर
मलहम कब मिल पाएंँगे।
लड़कपने के वो बीते दिन
ना जाने कब फिर आएंँगे

चिट्ठी, पत्री, खत, किताबत  
में हम कितना कुछ कहते थे
रहते बेशक दूर बहुत
पर साथ दिलों में रहते थे
साथ-साथ चलते हैं अब भी
पास मगर कब आएंँगे।
लड़कपने के वो बीते दिन
ना जाने कब फिर आएंँगे।।

झुलस रहे हैं रिश्ते सारे
स्वार्थ भरे लू की लपटों से
बिखर रहा है जीवन देखो
निज आरोपों औ रपटों से
हृदय द्रवित हो पूछ रहा है
इससे बदतर क्या पाएंँगे।
लड़कपने के वो बीते दिन
ना जाने कब फिर आएंँगे

ऐसे अवसादों से बाहर
निकल कभी क्या पाएंँगे
मिल बैठेंगे साथ कभी क्या
राग मिलन का गा पाएंँगे।
जब फैलेगी मधुर रागिनी
फिर नव गीत सजायेंगे
कभी सुनेंगे गीत तुम्हारे
और कभी हम खुद गाएंँगे
लड़कपने के वो बीते दिन
ना जाने कब फिर आएंगे
संग गुजारेंगे जो लम्हे
ना जाने कब फिर आएंँगे।।

 ✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        17सितंबर,2020

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

प्यार में पीर लें पीर को प्यार दें

 प्यार में पीर लें पीर को प्यार दें एक दूजे को हम इतना अधिकार दें, के प्यार में पीर लें पीर को प्यार दें। एक कसक सी न रह जाये दिल में कहीं, ...