मैं लोकतंत्र बोल रहा हूँ।

मैं लोकतंत्र बोल रहा हूँ।   

मैं दुनिया का लोकतंत्र हूँ
तुम सबसे कुछ बोल रहा हूँ
ध्यान से सुनना बातें मेरी
जिह्वा अपनी खोल रहा हूँ।

सालों से मुंह बंद किये
कितना कुछ मैंने देखा है
कितने ही आघातों को
बरसों से मैंने झेला है।

राजनीति के इस दंगल में
मुझको यूँ लाकर पटका है
सत्ता की खातिर कितनों ने
दिया मुझे भी झटका है।

सदियों से जिसने जब चाहा
तब मुझको पुचकारा है
और कभी दरवाजे पर से
ही मुझको दुत्कारा है।

कभी गुलामी की जंजीरों में
आजादी मैंने खोया है
और कभी आपातकाल में
जेलों में भी रोया है।

कभी थैयानमैन चौक पर मैंने
सरे आम चीत्कार किया
और कभी बर्मा ने मुझको
चौखट से फटकार दिया।

मेरी कीमत वो क्या जानें
जो आत्ममुग्धता में जीते हैं
अपने सपनों की खातिर
औरों के सपने पीते हैं।

मैं हर शोषित पीड़ित की बन
आवाज यहां पर गाता हूँ
नैतिकता के प्रतिमानों की
बदलाव यहां पर लाता हूँ।

दुनिया भर के मजदूरों का
गीत यहां मैं गाता हूँ
सभी किसानों के सुर में
अपनी आवाज़ मिलाता हूँ।

मैं प्रेमचंद के लेखों में बसता
भारतेंदु के नाटक में रचता
लोहिया के सपनों में जिंदा
जयप्रकाश बन हँसता हूँ।

मैं गांधी का रामराज्य हूँ
मैं सुभाष जैसा नायक हूँ
मैं माटी की खुशबू में बस
जन गण मन का गायक हूँ।

दुनिया के देशों में जब भी
घना अँधेरा छायेगा
नहीं कहीं कुछ राह बचेगी
तब जनतंत्र काम आएगा।

मैं अभिव्यक्ति की आजादी हूँ
उसके ही गीत सुनाता हूँ
सामाजिक कल्याण के लिए
बदलाव नया ले आता हूँ।

मैं जनता के द्वारा शासित
जनता का ही शासन हूँ
मैं आत्मा की अभिव्यक्ति हूँ
मैं जीवन का अनुशासन हूँ।

सबके मन के भावों को 
मैं अपने मुख से बोल रहा हूँ
ध्यान से सुनना बातें मेरी
जिह्वा अपनी खोल रहा हूँ।

मैं दुनिया का लोकतंत्र हूँ
तुम सबसे कुछ बोल रहा हूँ
मैं दुनिया का लोकतंत्र हूँ
तुम सबसे कुछ बोल रहा हूँ।

 ✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
     हैदराबाद
     15सितंबर,2020

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