ओझल यहां उजाले हैं।
ये दिल चलो कहीं दूर चलें
ओझल यहां उजाले हैं
चेहरों पर कितने चेहरे
कितने दिल के काले हैं।
विश्वासों की डोरी बांधी
हाथों से कैसे छूट गयी
जन्मों का बंधन था अपना
फिर कैसे वो टूट गयी।
लाख जतन की जाने की, पर
दरवाजों पे ताले हैं।
ये दिल चलो कहीं दूर चलें
ओझल यहां उजाले हैं।।
टूट गए हैं आज सभी भ्रम
अब सच से भय लगता है
बिखर गए सपने कुछ ऐसे
सोने से भय लगता है।
गीत नहीं गा पाता हूँ अब
होठों पर यूँ ताले हैं।
ये दिल चलो दूर कहीं चलें
ओझल यहां उजाले हैं।।
लाखों के मेले में ठहरा
अपना ना कह पाता हूँ
दर्द कराहता रहता प्रतिपल
मुक्त नहीं रह पाता हूँ।
कब तक रखूं धैर्य, तुम बोलो
जब शब्दों के लाले हैं।
ये दिल चलो कहीं दूर चलें
ओझल यहां उजाले हैं।।
✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
26सितंबर,2020
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