हमको इसमें रहने दो
जीवन है सरिता की धारा
हमको इसमें बहने दो।
हम भी उसके अनुगामी हैं
जिसमें जीवन पलते हैं
सहगामी बनकर प्रकृति के
मुक्त भाव से चलते हैं।
मुक्त गगन सा जीवन अपना
पंख प्रसारे फिरते हैं
नहीं सुहाती हमें गुलामी
मुक्तकंठ हम जीते हैं।
अपना है आकाश सुनिश्चित
उन्मुक्त भाव से फिरते हैं
मिला प्रेम से जो भी हमको
हम भी उससे मिलते हैं।
पिंजरों में ना बांधो हमको
बंधे, नहीं फिर जी पाएंगे
छूटा जो इक बार गगन ये
मुक्तकंठ ना गा पाएंगे।
✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
23सितंबर,2020
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