सूरज और जनता।

सूरज और जनता।   


आपन ताप छोड़ि के सूरज
लागत हौ मुरझाइल बा
लोभ, मोह, हित, लाभ म परिकर 
लागत हौ अरुझाइल बा।

भोर से लेइके रात ले देखा
मनवा में एक्कई बात चले
कइसे बनिहे जुगाड़ कतहुँ भी
कइसे अब घर दुआर चले।

बिखरल लागत सबहि भावना
सब इच्छा अनुमान भयल
चिक्कन चुप्पड़ बातन में जइसे
जिनगी भी अनुपात भयल।

देखि देखि के सपना सुघ्घर
आँखिन में अब दर्द भयल
बूँद-बूँद से होइ का जब
ओहमन मोतियाबिंद भयल।

आसमान भी गमछा बान्हे
लागत जइसन चिढावत बा
दिखाई के लालीपाप हाथ मे
लागत जइसे ललचावत बा।

कइसन काल चलल बा एहिजा
जिनगी सब हलकान भयल
शीशा दिखाइब अब सूरज के
सूरज के अपमान भयल।

अपने अधिकारन के खातिर
सब केहू परेशान भयल
जिम्मेदारी के चर्चा ओनसे
ओनकर ही अपमान भयल।

देखि के खबरन में नौटंकी
सब केहू बहलाइल बा
सूरज भी करिया बादर में
लागत हौ अरुझाइल बा।

जनतंत्र में जनता ही सब
बातन के जिम्मेदार हौ
अच्छा बुरा जो भी होई
सबमें वो भी हिस्सेदार हौ।

जनतन भाव बहुत हौ सुंदर
जनता हौ सूरज कै भांति
इनके बिन कबहु भोर न होई
कबहु न फैली जीवन ज्योति।

बनकर के जनतन के सारथी
जीवन के गुणगान करा
उनकर मन के भाव के समझा
ओकर ही सम्मान करा।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
      हैदराबाद
      13सितंबर,2020

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