जनमत के सरोकार।

जनमत के सरोकार। 

आज भूमिका बदल रही है
जन जन के व्यवहारों की
बदल रही है आज व्यवस्था
ताकत औ सरोकारों की।

चमक दमक के पीछे पड़कर
देखो सारे भाग रहे
कितने देखो लोग बचे जो
व्यवहारों में जाग रहे।

लोकतंत्र के मंदिर में भी
ऐसे भी हैं लोग बसे
कुछ बातें करते जनहित की
और कुछ अपनी जिद पे ठसे।

लोकतंत्र का चौथा खंभा 
भी कुछ कुछ बहलाता है
ले जाना होता और कहीं
और कहीं ले जाता है।

मूल भूत सुविधाओं की
बातें जैसे बेमानी हैं
भूख, गरीबी और चिकित्सा
मुद्दों की गुमनामी है।

बेरोजगारी की बातें अब
यहां नहीं कोई करता
फिल्मी संवादों से केवल
जनता का पेट नहीं भरता।

राष्ट्र संपन्न रहता तब ही
जब जनता जिम्मेदार बने
जिम्मेदारी तब आती है
सभी को जब रोजगार रहे।

सुविधाओं के वादे झांसे
बदलाव नहीं ये ला सकते
इनसे जनता स्वार्थी होगी
विश्वास नहीं ये ला सकते।

सत्ता लोलुपता ने जाने 
क्या क्या खेल रचाया है
आज़ादी से अब तक कितनी
उँगली पे रंग लगाया है।

उँगली की स्याही से केवल
जनमत नहीं कभी जागेगा
भूख, अशिक्षा औ गरीबी
मिटने से ही ये जागेगा।

जनतंत्र का विकल्प कभी भी
पूंजीवाद ना हो पायेगा
लोकतंत्र बस धूमिल होगा
हाथ नहीं कुछ भी आएगा।

कहने को तो जातिवाद का
विरोध यहां सभी करते हैं
पर वोटों की खातिर सारे
जाति-धरम लेकर चलते हैं।

मंचों की बातों से केवल
बदलाव नहीं कुछ आएगा
साथ, विकास, विश्वास ही बस
जनमत सुफल बना पायेगा।।

 
 ✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
       09सितंबर,2020

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