प्यास

         
             प्यास        

प्यासा मन क्या ढूंढ रहा
पनघट तो तेरे आस पास है
ज्ञान योग के भाव जगा
सागर विद्या का आस पास है।

विक्षिप्त न हो ये मौन समर है
पग-पग जीवन कांटों का सफर है
विचलित न हो तनिक मात्र भी
कर्मयोगी है, तू ही उद्धरण है।

हाड़-मांस का यंत्र नहीं है
तुझ जैसा अन्यत्र नहीं है
तुझमें गुम्फित कोटिश सपने
तू मात्र रूप, प्रतिबिंब नही है।

क्यूँ व्यथित घट-घट भटक रहा
प्यासा बन इत उत भटक रहा
भाग्य तेरा तेरे कर्म से जुड़ा
अन्यत्र कहीं क्यूँ भटक रहा।

हो सजग सुनिश्चित ग्रहण करो
अपने अवयव का वरण करो
व्योम ज्ञान का सकल, विशाल
प्यासे मन का उद्धरण करो।।

 ✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
          हैदराबाद 
          20मई, 2020

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