मानवता का एहसास उसे दो


 मानवता का एहसास दो।  

फिर आज सड़क को चलते देखा
रक्त फफोलों से रिसते देखा
भरे विषाद हज़ारों मन में
पग-पग उनको सिलते देखा।

नवजातों को तड़पते देखा
भूख-प्यास से मचलते देखा
हाथों की अमिट लकीरों को
तड़प-तड़प कर मिटते देखा।

गठरी देखी, कथरी देखी
हाथों में टूटी छतरी देखी
भीड़ भरे सुनसान सड़क पर
मौन तड़पता जीवन देखा।

गुड्डे-गुड़ियों का क्रंदन देखा
संघर्षों से आलिंगन देखा
पल-पल आस का दीप जलाए
जीवन का अभिनंदन देखा।

छांह सघन की आस लिए
सूरज को पथ पर चलते देखा
आज राह के अंधियारों को
रोशनी के लिए तरसते देखा।

जो मनुजता है आज अगर तो
मनुजता का एहसास उसे दो
आशाओं के दीप जलाकर
मानवता का प्रकाश उसे दो।

आंखों के आंसू थम जाए
ऐसी प्रखर पुकार उसे दो
मानव हो तो आज उठो फिर
मानवता का एहसास उसे दो।।

 ✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
       20मई, 2020

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