मुस्कान

            मुस्कान।                  

बेकदरी के आलम में
इतनी सी पहचान बहुत है
नहीं जरूरी सब कुछ बोलो
इक हल्की मुस्कान बहुत है।

मासूमियत से भरी हुई
आंखों में चाहत भरी हुई
इक नज़र प्यार से देखो
बस इतनी सी पहचान बहुत है।

जीवन के पथ में नित-नित
ऐसे पल भी आते हैं
जब दर्द गुजर कर हद से
बन आंसू ढल जाते हैं।

तब अंतस की पीड़ा खातिर
अनुशीलन का ज्ञान बहुत है
पुनः चेतना अनुपालन को
इक मधुर मुस्कान बहुत है।

पीड़ा का साम्राज्य वृहद हो
अंतस को जब ढंक लेता है
जब मर्माहत मन व्यथित हो
स्वयं समर्पण कर देता है।

तब जीवन के शोक सिंधु में
इक हलचल अम्लान बहुत है
पुनः चेतना अनुपालन को
इक मधुर मुस्कान बहुत है।

हर इच्छा पूरी हो सबकी
परिमाण नही कोई हो सकता
हर कहानी पूरी लिख जाए
ऐसा कम ही हो सकता।

ऐसे में जो पूरे हो जाएं
उतने ही अरमान बहुत हैं
पुनः चेतना अनुपालन को
हल्की सी मुस्कान बहुत है।।

 ✍️©अजय कुमार पाण्डेय
         हैदराबाद
         20मई,2020

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