सत्ता अभिनंदन का
गीत नहीं मैं गाता हूँ
दरबारों के वंदन का
गीत नहीं मैं गाता हूँ।
मैं भारत की बातें करता
जन-जन तक पहुंचाता हूँ
मैं भारत का कलमकार हूँ
जन गण के गीत सुनाता हूँ।
जिनकी बातों में भारत
की तस्वीर दिखाई देती है
नवभारत के स्वप्न की
ताबीर दिखाई देती है।
जिनके जज्बातों में मुझको
राष्ट्रवाद दिखाई देता है
जिनके व्यवहारों में मुझको
राष्ट्र प्रथम दिखाई देता है।
जिनकी आंखों में गांधी
का स्वप्न दिखाई देता है
जिनके इच्छाओं में नायक
का यत्न दिखाई देता है।
ऐसे रणवीरों के कौशल
पर पग-पग शीश नवाता हूँ
मैं भारत का कलमकार हूँ
मैं गीत उसी के गाता हूँ।
जिनके खेतों में चलने से
धरती भी इतराती है
जिनकी मेहनतकश हाथों
से हरियाली लहराती है।
अपने खून-पसीने से
जो धरती सींचा करते हैं
तपती जेठ दुपहरी में जो
जिस्म जलाया करते हैं।
ये सच्चे अधिनायक हैं इनकी
पीड़ा जन-जन तक पहुंचाता हूँ
मैं भारत का कलमकार हूँ
मैं गीत इन्हीं के गाता हूँ।
ये जन-गण-मन का गायक हैं
वसुधैव कुटुंबकम के नायक हैं
जाति, धर्म, मजहब से ऊपर
सच्चे, राष्ट्रगान के गायक हैं।
मैं भारत की माटी में मिलकर
अपनी पहचान बनाता हूँ
मैं भारत का कलमकार हूँ
जन-गण के गीत सुनाता हूँ।।
✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
28मई, 2020
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