मेरी पुत्रियों द्वारा निर्मित चित्र पर चिंतन करती मेरी रचना
पास उतना ही पाओगे
चले अकेले जिस पथ पर तुम
मुश्किल है चल पाओगे
जाओगे जितना दूर तुम मुझसे
उतना ही पास मुझे तुम पाओगे।।
जीवन है अनमोल यहां
नित गीत नए सुनाता है
सात जनम की बातें करता
नित स्वप्न नए सजाता है।
इन सपनों की कड़ियों से
तुम कैसे बच पाओगे,
जाओगे जितना दूर तुम मुझसे
उतना ही पास मुझे तुम पाओगे।।
प्रेम मेरा अनमोल खजाना
मुझसा कोई क्या पाओगे
जो प्रेम समर्पण पाया मुझसे
नहीं और कहीं तुम पाओगे।
मेरी साँसों की लड़ियों से
दूर नहीं जा पाओगे
जाओगे जितना दूर तुम मुझसे
उतना ही पास मुझे तुम पाओगे।।
जीवन पथ पर चलते चलते
कहीं कभी थक जाओगे
याद आएंगी तब बाहें मेरी
क्षण भर को रुक जाओगे।
मेरी जैसी सहगामिनी
नहीं कभी फिर पाओगे
जाओ कितना दूर तुम मुझसे
उतना ही पास मुझे तुम पाओगे।।
✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
28मई,2020
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