आओ के चांदनी रात बाकी है
अपने मिलन की बात बाकी है
ये रश्मियां पुकारती हैं तुम्हें
वो अधूरी हर बात बाकी है।
रेशमी स्मृतियों की चादर है
समर्पण का अकुल आग्रह है
इंतजार तुम्हें भी है जिसका
मेरे आँचल में वो प्रेम सागर है।
कितना सुंदर रूप तुम्हारा
करता आह्लादित अंतः सारा
आज नहीं रोको तुम मुझको
तुमसे है मधुमास हमारा।
पास आओ और मैं तुमको सुनूं
चांद की छांव में सपने बुनूँ
कट जाये रात सारी आगोश में
तुम कहते रहो, मैं तुमको सुनूं।।
✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
28मई, 2020
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