मैं माँ की परछाईं हूँ।
मैं माँ की परछाईं हूँ
माँ से जीवन पाई हूँ
माँ ही मेरी भोर है
मैं उसकी तरुणाई हूँ।
मुश्किल राहों की
मेरी है हमराही तू
साथ रहे जो साथ चले
वो मेरी परछाईं तू।
संघर्ष भरे अग्निपथ की
तू राहत है, गहराई है
जीवन रूपी उपवन की
खुशियों की अंगनाई है।
बेटी हूँ ताकत हूँ तेरी
इक दिन मैं दिखलाऊँगी
बेटे जो न निभा सकेंगे
वो सारे फ़र्ज़ निभाऊंगी।
तुझसे ही है जीवन पाया
संस्कार सभी तुझसे ही पाया
स्थिरता, ठहराव, तपस्या
भाव सभी तेरा अपनाया।
तू ही मेरी शक्ति सुधा है
तू मेरी सच्चाई है
तू ही वो वटवृक्ष है माँ
मैं जिसकी परछाईं हूँ।।
✍️©अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
21मई,2020
Very nice poem uncle. 🙏🙏
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