राष्ट्रकवि स्व.शी हरिवंश राय बच्चन जी की कालजयी रचना मधुशाला से प्रेरणा लेकर मैं चंद पंक्तियां वर्तमान सामाजिक परिवेश को केंद्रित करके उनके श्री चरणों में समर्पित करते हुए आप सबके सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हूँ। इसका उद्देश्य किसी के भाव को आहत करना नहीं है।
फिर बोल पड़ी मधुशाला
फिर बोल पड़ी मधुशाला
जीवन-मृत्यु में संघर्ष छिड़ा है
भय-निर्भय में कौन बड़ा है
फिकर कहां करता मतवाला
मुड़ जाता, दिखती मधुशाला।
नहीं दिखा जब ठौर ठिकाना
नहीं मिला जब कोई बहाना
नहीं मिली जब कोई शाला
पुनः याद आयी मधुशाला।
बंद हुईं जब गलियां सारी
सुने हुए मुहल्ले सारे
नहीं दिखी जब राह कोई
मुड़ चला जिधर थी मधुशाला।
नहीं दिखी जब राह कोई
नहीं मिली जब थाह कोई
थक गया जब चलते-चलते
बोल पड़ी तब मधुशाला।
लंबे डग भरे उधर चला
मन ही मन में खिला-खिला
पुनः आज फिर तृप्त करेगी
इन होठों को मधुशाला।
कितने दिन के बाद मिली
हाय ढूंढा तुझको गली-गली
आलिंगन में आ भर लूँ
बिछड़ न जाये फिर मधुशाला।
रहती दुनिया याद करेगी
हर होठों पर बात रहेगी
बंद हुए जब आश्रय सारे
बोल पड़ी तब मधुशाला।।
✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
06मई, 2020
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