उर्मिला की वेदना।
कालचक्र ने चक्र चलाया
हंसता हुआ कुटुंब बिखराया।
एक वचन के लाज के लिए
अवधनरेश ने खुद को तपाया।
रघुकुल रीति उच्च है सबसे
प्राण जाए पर वचन न टरते।
इक हठ से हो वशीभूत
प्रिय सुत को वनवास पठाया।
भाई और भार्या संग
श्री राम वन चल दिये
रोते, बिलखते पुरवासी
कुटुंब सारे रह गए।
सीता संग प्रभु राम लक्ष्मण
वन में जाकर रहने लगे।
उर्मिला पत्नी लक्ष्मण की
महल में व्याकुल रह गई।
प्रतिपल नैनों में सूनापन
नैन ढूंढते थे अपनापन।
सांस सांस में नाम बुलाती
जैसे-तैसे वक्त बिताती।
इक-इक पल उसका भारी था
मन में प्रतिपल उथल-पुथल था।
मन ही मन उदास वो रहती
हंसती, लेकिन कुछ न कहती।
फूलों सी थी कोमल काया
तिस पर पड़ी विरह की छाया।
जी भर भी वो निहार न पाई
के बिछोह की घड़ी थी आयी ।
कितने चाहत भरे थे मन में
पिया संग जब आयी घर में।
पर किस्मत ने चक्र चलाया
विरह-वेदना में उलझाया।
वो महलों की रहने वाली
प्रतिपल थी चहकने वाली ।
इक झंकार वाणी में उसकी
जो खो गयी विरह में पिय की।
महल भी उसको सूना लगता
रत्न-आभूषण चुभता रहता।
चेहरे की मुस्कान खो गयी
जोगन सी जीने वो लग गयी।
निज सुध उसको नहीं रह गयी
आपस की बातें याद रह गयी ।
करना तुम अपने धैर्य की रक्षा
करूंगा मैं भी वचन की रक्षा।
तनिक न तुम चिंतित रहना
बस करना मेरी सदा प्रतीक्षा।
अग्रज सेवा का भार देती हूँ
निद्रा, चिंता, निज लेती हूं।
तुम्हीं पूज्य, आराध्य हो मेरे
पर प्रभु के हैं आराध्य बहुतेरे।
प्रतिपल उनकी शरण में रहना
निष्काम भाव से सेवा करना।
पर मन था कि नहीं मानता
आखिर उसको क्या समझता।
अंदर-अंदर घुटती रहती
हंसती, आंसू पीती रहती।
निकल न जाएं चित्त से उसके
आह नहीं वो भर पाती थी।
सपने गढ़ती उन्हें बुहारती
मन में पिय की छवि निहारती।
सुनती सबकी बातें सारी
कुछ न कहती पर सुकुमारी
जड़-चेतन सब उसे निहारते
अपना सब कुछ उसपे वारते।
मुस्कान सदा चेहरे पर रखती
अंदर ही अंदर घुटती रहती।
नियति ने कैसा चक्र चलाया
क्षण भर में जीवन बिखराया।
कैसे रहते होंगे वन में
कितने प्रश्न भरे थे मन में।
जैसे तैसे समय बिताती
अटारी कभी वाटिका में जाती।
सुध-बुध अपनी खो जाती थी
मन ही मन में वो रोती थी।
चैन नहीं था इक पल में
व्याकुलता भरी जीवन में।
शीतलता चंद्र की नश्तर लगते
बिस्तर मखमली कंटक लगते ।
अकसर वो खुद को समझाती
आप ही आप ढांढस वो बंधाती ।
मन ही मन बातें करती थी
पाती लिखती फिर पढ़ती थी।
स्वयं से ही सन्देश बनाती
दर्पण को फिर उसे सुनाती।
रश्मि किरण से बातें करती
अपने मन की बातें कहती।
चौदह वर्ष शीघ्र बीत जाएंगे
खुशियों के पल फिर आएंगे।
पिय छवि मन में ले हंसती रहती
प्रतीक्षा पल-पल करती रहती।
पिय के लिए सदा रहेगी
उनके आने की राह तकेगी।
धन्य-धन्य है उर्मिला नारी
वचन के लिए खुशियां वारी।
शब्द नहीं है पास हमारे
प्रकट कर जो त्याग तुम्हारा।।
©अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
04 मई, 2020
Very nice uncle 🙏🙏
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
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