मन का दर्पण

मन का दर्पण। 

मन को अपने दर्पण कर लो
खुद में खुद को अर्पण कर लो।
मन हो जाये पूरणमासी
स्वतः दूर हो जाय उदासी।

खुशियों की रश्मि किरण तब
मद्धम-मद्धम द्वार पे आती।
अद्भुत रूप धरे जीवन का
हर्षित करती छवि झलकाती।

कुछ इठलाती, कुछ इतराती
चुपके-चुपके कदम बढ़ाती।
हंसती, खिलती स्वप्न सँजोती
खुशियों को दामन में पिरोती।

पुलकित करती, भाव जगाती
जीवन की बगिया महकाती।।

©️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
03 मई, 2020

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