शापित होने से संभलो।
शापित हो रहा व्यवहार है शायद
शापित मनोविचार है शायद
पीड़ित हैं सब भाव हमारे
कलुषित नित्याचार है शायद।
कूटनीति का व्यवहार बढा है,
रिश्तों में व्यापार बढा है
प्रभावशाली देहरी पर शायद
संस्कारों की कातर कतार बढा है।
हर कोई अनुकंपित लगता
नींद उसी की सोता जगता
विष व्याप्त हो रहा जगत में
विषय प्रभावित जीवन लगता।
व्यक्तिवाद से सब ग्रसित हैं लगते
निज आंखों में द्विज सपने सजते
स्वार्थी होते व्यवहारों से
तन, मन, भाव, बदन सब ढंकते।
हर कोने में क्रंदन है अगणित
सत्यकाम है घायल शापित
देख के पीड़ित व्यवहारों से
नीर, अवनि, अंबर है विचलित।
दनुज कर्मों का साम्राज्य बढा है
अतृप्त कामना का प्रभाव बढा है
हाथ जोड़ भटक रही प्रतिज्ञा
लगता सब निर्जीव खड़ा है।
अपनी सब परिभाषा बदलो
आहार, विचार, व्यवहार सब बदलो
मनुज हो तो मनुजता अपनाओ
हित-लाभ की परिभाषा बदलो।
अग्निपथ है जीवन सुन लो
अपना उचित मार्ग तुम चुन लो
शापित न हो मार्ग सत्य का
कुंठित व्यवहारों से संभलो।।
✍️©अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
23मई,2020
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