महिमा खिचड़ी की।
खिचड़ी के महिमा है अपार
नहीं कउनो इसका पारावार
लरिका-बच्चा संग परिवार
करें विनीत सब बारंबार।।
अमीर-गरीब सबके प्यारी
वैद्य-हकीम सबके दुलारी
हर रोगन के रामबाण है
खिचड़ी है जन-जन की प्यारी।।
प्रभू राम के मन को भाया
पाण्डव के वनवास बिताया
इक दाना चावल का खाकर
पाण्डव को वरदान दिलाया।।
विदुर घरे पतरी पर आई
तब माधव के मन को भाई
सत्य धरम का पाठ पढ़ाया
विदुर नीति जन जन अपनाई।।
बिरबल के हथियार बनू तब
अकबर के तू पाठ पढ़ायू
इक प्रतिभागी, अधिकारी को
न्याय उचित सम्मान दिलायू।।
राणा प्रताप या लक्ष्मीबाई
क्रांती के जब अलख जगाई
तोहइँ से बलवान बने सब
मन, वचन मा शुद्धता पाई।।
आज़ादी की छिड़ी लड़ाई
तुहीं बनू तब जीवनदायी
आज़ाद, भगत, गुरु अरु बिस्मिल
सब करें खिचड़ी के बड़ाई।।
तुलसी कबीर रसखान सूर
कितने ही प्रतिमान खिलायू
गीता, वाणी, वेद, उपनिषद
संस्कृति के सम्मान दिलायू।।
नहीं केहू से भेद करियू
सब संग हिल-मिल रहा करियू
कदम कदम पे राह दिखायू
जीवन के अभिप्राय बतायू।।
अमीर गरीब तोहे चाहे
केहू से ना भेद मनायू
समाजवाद तोहसे सीखे
मिलजुल सबके रहे सिखायू।।
छल कपट से दूर रहियू तू
सबके अपनाईयु अँजुरी मां
लालबहादुर संगे आयू
तू संसद तक के पतरी मां।।
काऊ कही तोहरे खातिर
कछु शब्द नहीं है गठरी मां
जीवन भर आशीष दिहा तू
खुशहाल रहें सब नगरी मां।।
महिमा अब न जाये बखानी
निरमल यूँ गंगा के पानी
धन्य-धन्य हैं, नमन करें हम
ज्ञान तोहइँ तुहीं जीवनदानी।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
15 मई, 2020
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