मन, मन ही मन मुस्काता है
जब शब्दों में छवि बनाता है
जब स्वयं को समझ जाता है
तब मन कवि बन जाता है।।
जब खुद से बातें करता है
खुद हंसता है, खुद रोता है
जब दुनिया नई बनाता है
तब मन कवि बन जाता है।।
मनचाहा प्यार जो पाता है
या जब ठुकराया जाता है
कोई राह नहीं जब पाता है
तब मन कवि बन जाता है।।
जब चोट कहीं भी लगती हो
पर दर्द हृदय में होता है
जब अपना कोई ठुकराता है
तब मन कवि बन जाता है।।
दुर्बलता पे नियंत्रण पाता है
जब अश्रु छिपाना आता है
जब जीवन समझ वो जाता है
तब मन कवि बन जाता है।।
©अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
11मई, 2020
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