मुश्किल है वापस आना

मुश्किल है वापस आना

अब इतना आसान नहीं है
प्रिये  पुनः वापस आना,
ये भी अब आसान नही 
वो बात पुरानी दोहराना।।

कितने गीत लिखे थे मैंने
इक दूजे के तराने के
खुद से भी मैं दूर हुआ 
पास तुम्हारे आने को।।

कितना कुछ बिन कहे, सुने थे
प्रथम बार जब दोनों मिले थे
सुध-बुध अपनी भूल प्रिये
मिलन के कितने स्वप्न बुने थे।।

उस दिन, थी छाई  बदली
दोनों पर कौंधी बिजली
नैनों में ले अश्रु मिली जब
कितने विवश लगे थे  तब।।

जब कहा तुम्हें जाना होगा
बिछोह हमें अपनाना होगा
अश्रु हमें अब पीना होगा
हो विवश हमें जीना होगा।।

स्मृतियों के घाव अभी हैं
बातें सारी याद अभी हैं
तुम शायद सब भूल चुकी हो
यादों को मिलों छोड़ चुकी हो।।

लेकिन तब कुछ घाव मिले थे
वो घाव अभी तक ताजे हैं
क्या बतलाऊँ अब  तुमको
कितनी रातें आंखों में काटे हैं।।

उन घावों से उबर चुका हूँ 
अब नहीं उन्हें दुहराना है
भूल के भी आवाज़ न देना
मुश्किल वापस आना है।।

©️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
11मई, 2020

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