चित्र चिंतन।
अंतर्मन।
पल-पल, छिन-छिन व्याधि दे रही
है अंतर्मन की ज्वाला
लगता पल पल पी रहा हूँ
घूंट घूंट भर कर हाला।
जब सत्य-असत्य में भेद न रहे
जब स्वार्थ-निःस्वास्थ में भेद न रहे
मूंद नयन तब चिंतन करना
अपने अंतर्मन की सुन लेना।
जब आक्षेप अनर्गल लगाए कोई
जब कपट भाव दिखलाए कोई
तब खुद को केंद्रित कर लेना
अपने मन की सुन लेना।
जब मर्यादा का मान न रहे
जब निष्ठा का सम्मान न रहे
तब खुद ही खुद से मिल लेना
अपने अंतर्मन की सुन लेना।
सत्य मार्ग है अतिशय दुष्कर
चलना इसपर संभल संभलकर
थक जाओ यदि कहीं कभी तो
स्थिर अंतर्मन को कर लेना।
हवनकुंड मन को कर लेना
सत्कर्मों की हवि भर लेना
आस निराश से विलग
जीत का तुम आवाहन करना।
लक्ष्य कठिन पर अघट्टय नही है
सत्य अटल है अधीर नही है
संकल्प सृजन भावों में भरना
अंतर्मन स्थिर कर लेना।
अपने अंतर्मन की सुन लेना।।
✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
06अप्रैल, 2020
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