व्यंग्य- राजनीतिक इल्जाम

राजनीतिक इल्जाम।  

एक ढाबे के किनारे मैं खड़ा था
थोड़ी दूर पर मैले कुचैले कपड़ों में
जूठन के ढेर के समीप वो खड़ा था।
मैंने पूछा भूखा है क्या- थोड़ा सब्र कर
आजकल दिल्ली में यही चर्चा आम है
तू नहीं समझेगा नासमझ, क्यूंकि
तू तो स्वार्थी भुखमरा इंसान है।

पिछले कितने ही सालों से 
यही सुनता आ रहा हूँ
पर भूख क्या होती है
मैं उनको नही समझा पा रहा हूँ।
तू चिंता न कर
गोदाम सारे अनाजों से ठसे पड़े हैं
पर क्या करूं तुझसे भी ज्यादा भूखे
वहां की लाइन में पहले से ही खड़े हैं।

तेरा भी नंबर आएगा, तू सब्र कर
जब तक रोटी नही है
तू वादों से ही अपना पेट भर।
सोच तू कितना खुशनसीब है
जो जूठन के ढेर पर पड़ा है
अरे सब बहाने हैं यहां
क्या भूख से भी कोई मरा है।

अब दिल्ली के गलियारों में 
केवल यही चर्चा आम है
भूख से कब कोई मरा है
ये तो महज राजनीतिक इल्जाम है।
तू भी उठ चल, अब राजनीति न कर
जूठन ही सही, यही खाकर अपना पेट भर
वर्ना तू पछतायेगा, जब ये जूठन भी
किसी सरकारी कोष में जमा हो जाएगा।।

©️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
28अप्रैल, 2020

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