बचपन

बचपन।  

आओ फिर बचपन हम जी लें
अपनी उन बीती को जी लें
दिल के सब दरवाजे खोलें
आओ फिर बचपन हम जी लें।।

वो मां की लोरी, वो ममता का आँचल
वो दादा की घुड़की, वो दादी का आँचल
वो खिलौनों की खातिर हठ कर मचलना
वो पापा की उंगली पकड़कर मचलना
वो चुपके से पापा का जेबें खंगालना
गुम सुम सी देखती सब ममता बिचारी
बहुत याद आती हैं, बातें वो सारी।।

वो मम्मी की उंगली थामे स्कूल को जाना
वो दोस्तों से रूठना, पल में मनाना
वो टीचर की डांटें, वो प्यारी सी बातें
बेवजह ही गूंजती हरपल किलकारी
बहुत याद आती हैं, बातें वो सारी।।

वो बहना की राखी, वो भाई से लड़ना
स्कूलों की छुट्टी, वो बारिश में भींगना
भींगे हुए मां के आंचल में चिपकना
वो प्यारा सा गुस्सा, वो प्यारी सी थपकी।

गलतियों को हमारी सबसे छुपाना
खुद डांट खाना पर हमको बचाना
हर दर्द पे हमार आप ही आंसू बहाना
फिर भी लुटाती ममता वो सारी
बहुत याद आती हैं, बातें वो सारी।।

हमारे लिए ताजी रोटी बनाना
खुद बासी खाकर के सो जाना
गर्मी में ऐ सी से ठंडा था आँचल
ठंडक में गोदी ही था रजाई हमारा
कितना मधुर था वो बचपन हमारा।

खुशियों के लिए हमारी
जिन्होंने किये इतने त्याग
उनके ही चरणों में है काशी-प्रयाग
दुनिया मे नही कोई है तीरथ ऐसा
माता-पिता के चरणों के जैसा।

कहां आ गए पर हम आज चलते चलते
तलाशे हजारों पर फिर वो पल नहीं मिलते
आधुनिकता की होड़ में पल पल है भटकते
पैसों की रफ्तार में है खोया कहीं अपनापन
कितना मधुर था वही अपना बचपन।

कान तरसते हैं कोई तो फिर दुहराए
उन्हीं तुतलाते नामों को फिर से बुलाये
फिर से उन्हीं गलियों में घुमाए
कब तक फिरूं आंखों में आंसू छुपाए
कोई तो हो जो फिर से बचपन लौटाए।
कोई तो हो जो फिर से बचपन लौटाए।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
28अप्रैल, 2020

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