मेरी पुत्रियों द्वारा निर्मित चित्र।
हिस्से की रोटी
सदियों का संताप रहा है
हर पीढ़ी ने दर्द सहा है
अधिकारों की रक्षा हेतु
पल-पल का संघर्ष रहा है।
सामाजिक बदलाव की ज्वाला
पल-पल घूंट घूंट भर हाला
विरह, वेदना, घृणित भाव बढ़ा है
अर्थ प्रभावी जब से समाज बढ़ा है।
विद्या बनी जबसे धन की नीति
नैतिकता बन गयी मन की वृत्ति
इसका मोल चुकाऊं कैसे
इस परिवर्तन को अपनाऊँ कैसे।
चंहुदिश से वार हो रहा
दीन हीन का परिहास हो रहा
इस क्षण को अपनाऊँ कैसे
हृदय खोल व्याधि दिखलाऊँ कैसे।
उठो कलम इस दर्द को लिखो
मुक्त वायु के अनुबंध को लिखो
मिटे भेद जल जाए ज्योति
मिल जाये सबको, हिस्से की रोटी।।
अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
04अप्रैल, 2020
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