संस्कार

संस्कार।  

बीमार हो रही सोच को
जरूरत है पुनः उपचार की
नहीं कोई है दवा जरूरी
जरूरत है उचित संस्कार की।।

भोग, विलास, भौतिकता ने
मानवीय मूल्यों को भुलाया है
आधुनिकता की होड़ में बेसबब
अपने अध्यात्म को भुलाया है।

स्वच्छंदता को विकास समझ
हम, फूले नहीं समाते हैं
अरे, कितने नादान हैं सभी
अपनी ही मूरखता पे इतराते हैं।

आज जरूरत है हमें, पुनः
दृष्टिकोण में सुधार की
नहीं कोई है दवा जरूरी
जरूरत है उचित संस्कार की।।

शिक्षा बनी है आज जरूरत
धनार्जन एवं व्यापार की
धनलोलुपता की बलि चढ़ रही
शिक्षा नैतिक व्यवहार की।

विद्यालय अब केंद्र बन रहे
ध्वंस-वृत्ति के व्यवहार की
साये में जिसकी बैठ कुटिलता
साथ दे रही उच्छृंखल व्यवहार की।

आज जरूरत है हमें पुनः
सार्थक, सात्विक बदलाव की
नहीं कोई है दवा जरूरी
जरूरत है उचित संस्कार की।।

मानवता में भेद दिख रहा
पथ भटके इंसानों में
स्वार्थी बनी आज प्रतिज्ञा
चंद स्वार्थी सत्ता के दीवानों में।

अराजकता, अन्याय, हीनता को
जरूरत है पुनः मिटाने की
पुनः जरूरत आज हमें है
पुरुषोत्तम व्यवहार की।

आज पुनः है संकल्प जरूरी
श्रद्धा एवं विश्वास की
आज पुनः है संकल्प जरूरी
सात्विक ऋषि प्रदत्त संस्कार की।

इन्ही सात्विक संस्कारों से
राष्ट्रीयता लहरायेगी
राष्ट्र हमारा समृद्ध बनेगा
विलक्षण प्रगति ध्वज लहराएगा।

इसके लिए है आज जरूरी
एक आध्यात्मिक उपचार की
नहीं कोई है दवा जरूरी
जरूरत है आज उचित संस्कार की।।

©️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
27 अप्रैल, 2020




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