संभरण करो।
दूर क्षितिज दृष्टिगोचर होता
दिनकर छिपता, रोज निकलता
शाश्वत सत्य के इस पाठ्य से
सकल विश्व को सत्यापित करता।
जीवनपथ चाहे जैसा भी हो
सम हो या विषम पथ हो
समभाव हृदय में लेकर
प्रेम-शांति का धरता बन, संचरण करो।
युग का पथ कण्टकाकीर्ण भले हो
घनघोर भले तम का बादल हो
कलम साधक हो सत्य पुजारी
नवकांति का उपकरण धरो।
कथनी-करनी का भेद त्याग कर
जात-पांत का भेद त्याग कर
कटुताओं का विष त्याग कर
आओ जग संभरण करो।
आओ जग संभरण करो।।
©️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
19 अप्रैल, 2020
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