उत्तिष्ठ भारत।
उत्तिष्ठ भारत का आह्वान लिए
मन में भावों का वेग लिए
उर में लिए प्रबल हलचल
चरण नापते जल और थल।
हे पाथेय नही तुम रुकना
पल-पल, छिन-छिन बढ़ते रहना।
जोश नया नित नूतन भर ले
उत्साहों का अन्वीक्षण कर ले।
कुछ ऐसा राग भावों में भर दे
सकल विश्व को रसमय कर दे।
ऐसा रस जो भावप्रवण हो
सकल राष्ट्र का तमिस्त्र द्रवण हो।
हे वीणावादिनी वरदान यही दो
लेखनी को मेरे भाव यही दो।
ले आशा के भाव हृदय में
जागृति की हुंकार उठे
हो प्रदीप्तवान हर कोना कोना
उत्तिष्ठ भारत के भाव जगें।।
अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
17 अप्रैल, 2020
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