प्रातः वंदन।
उठो मनुज स्वागत करो
स्नेहिल, सुरभित प्रभात का
त्याग कर आलस्य सारे
प्रभात का स्वागत करो।
क्यूँ सो रहा है अभी तक
स्वयं से साक्षात्कार कर
हो रही है नवीन भोर
इस भोर का स्वागत करो।
व्यतीत निशा अब हो गयी
तम की चादर हट चुकी
छोड़ कर प्रमाद सारे
हर्ष से स्वागत करो।
बन चुनौती खड़े रहो
प्रतिपल कराल काल के
बन के दीपक ज्ञान का
दिव्य ज्योति प्रसारित करो।
है पल ये शंखनाद का
धर्म राष्ट्र के प्रसार का
अपने शंखनाद से तुम
विदीर्ण व्योम को करो।
उठो हिमाद्रि गिरी श्रृंग से
है माँ भारती पुकारती
त्याग कर अज्ञान सारे
स्वदेश के लिए जियो
स्वदेश के लिए मारो।
त्याग कर आलस्य सारे
नव प्रभात का स्वागत करो।।
©️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
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