मेरी पुत्रियों द्वारा निर्मित चित्र
चित्र चिंतन-पलायन।
पलकों में इक दर्द लिए
उर में सांसें सर्द लिए
बोझिल कदमों से चला जा रहा
पल-पल तिल तिल मरा जा रहा।
हर धड़कन इक चोट सी लगती
हर पदचाप पे इक हुक सी उठती
कहीं कोई तो होगा अपना
जो दिखलाता आत्मीयता का सपना।
थके समेटे सपनों की गठरी
आस की चाहत, विश्वास की छतरी
चक्षु विकल हैं, नम हैं ग्रीवा
टूट गयी जो करी प्रतिज्ञा।
नीड़ छूटता जाता है क्यूँ
नन्हा सपना व्याकुल है क्यूँ
नही कहीं है उत्तर अब तक
सब कुछ छूटा जाता है क्यूँ।
झर झर बहते आंसू नैनों से
ढांढस उसे बंधाऊँ कैसे
पूछ रहा हूँ मैं खुद ही से
पलायन उसका रोकूँ कैसे।।
अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
28मार्च, 2020
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