परदेसी
बोझिल साँसें , भाव शून्य चेहरा
उदास कदमों से वो चला जा रहा था
उसे देख मैंने पूछा -
क्या बात है, क्यूँ उदास हो तुम
इस कदर क्यूँ परेशान हो तुम ?
उसने बोला - क्या यही है वो ज़मीन
जिसकी आज़ादी के लड़े थे हम
ये बंगाली,वो पंजाबी
हम मद्रासी, तुम बिहारी
इन वर्गों में नहीं बंटे थे हम
फिर ये भेद कैसे आ गया
कल तक जो साथ चले
आज न जाने कहाँ खो गए
क्षेत्रवाद की ऐसी आंधी चली
अपने ही देश में हम परदेसी हो गए ||
अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
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