चले चलो
चले चलो, चले चलो
कर्मपथ पर चले चलो
भोर की किरण सदृश
निशा को तुम हरे चलो।
चले चलो, चले चलो।।
कब सरल रहा ये जीवन
कांटों भरा भले हो उपवन
कर्मबल के तप से तुम
जीवन सहज करे चलो।
चले चलो, चले चलो।।
मनुष्य हो तो कैसा भ्रम
न फँसो मदांध वित्त चित्त में
मनुष्यता की राह में
वही मनुष्य जो मनुष्य के लिए मरे।
चले चलो, चले चलो।।
अतर्क राह हो भले
सतर्क मगर हों पथिक
समर्थ भाव से सभी
अभीष्ट तारते चलो।
चले चलो, चले चलो।।
अनंत देव हैं यहां
अखण्ड आत्मभाव हैं
सजीव उदार कीर्ति से
सभी को पूजते चलो।
चले चलो, चले चलो।।
अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
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