विश्वास गंवाए
चंचल हृदय तुम्हारा था
ये सारा खेल तुम्हारा था
तुमने तो परिहास किया
पर जीवन मरण हमारा था।
हम तो सदा परे रहते थे
जीवन में तुम मेरे आये
शुष्क परित्यक्त मरुभूमि में
स्नेहिल, आत्मिक स्वप्न जगाये।
अमूल्य निधि था अपना जीवन
जो किया समर्पित स्नेह भाव से
पर भ्रम से वशीभूत होकर के
तुम ही इसका मोल लगाए।
प्रतिक्षण श्रमकण बन अश्रु गिरे हैं
मेरी जिस निज नीरवता पर
भान नही है तुझे बावली
तूने जो विश्वास गंवाए।।
अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
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