क्या विचार है ?

     क्या विचार है ?                                     


और कहो फिर क्या विचार है 
गहन हो रहा क्यूँ अंधकार है ?
निज लाभ से गुंठित होकर 
बिखर रहा क्यूँ संस्कार है ?
और कहो फिर क्या विचार है 
गहन हो रहा क्यूँ अंधकार है ?

अधीर हो रहा है यौवन 
गढ़ता नित नया मोहपाश है ,
त्वरित निष्कर्षों की आशा में 
दिशाहीन हो रहा नैतिक प्रयास है | 
और कहो फिर क्या विचार है 
गहन हो रहा क्यूँ अंधकार है ?

जाने किधर जा रहा है जीवन 
किंकर्तव्यविमूढ़ हो रहे सब अनुबंध 
संबंधों की देहरी पर 
आ रहा कैसा ठहराव है | 
और कहो फिर क्या विचार है 
गहन हो रहा क्यूँ अंधकार है ?

टूट रही वर्जनाएं सारी 
खंड खंड हो रही सीमायें सारी  
मर्यादा के आसमान में 
नहीं दिख रहा अब कोई दिनकर 
अभिव्यक्ति के नाम पे देखो 
उच्छृंखल हो रहा आहार -व्यवहार है | 
और कहो फिर क्या विचार है 
गहन हो रहा क्यूँ अंधकार है ?

अजय कुमार पाण्डेय 

हैदराबाद

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