संपन्न करो

              सम्पन्न करो।                            


तुम सतत विज्ञान रूप
तुम अविच्छिन्न ज्ञान धूप
तुम प्रभात की फेरी हो
तुम वासस्थान की देहरी हो।

तुमसे है जीवन पाया
तुमसे ही निज पहचान बनी
प्रतिपल गुंठित चक्रव्यूह की
तुम ही तारणहार बनी।

जीवन जो प्रातःकाल है
तो तुम ही सूर्योदय बने
मृगतृष्णा के सब रेशमी दुशाले
तुम्हारे ज्ञान से ही है छंटे।

इस जीवन का यथार्थ तुम्ही हो
तुम ही हो जीवन की अंगड़ाई
गहराते इस तमस का
पथप्रदर्शक प्रकाश तुम्ही हो।

मानवता की यज्ञ वेदी यह
श्रद्धा, विश्वास, आस्था की लौ
वो छाया, वो माया, वो काया
आकर सब पूर्णाहुति बनो।

जीवन रूपी इस यज्ञ को
अपने सुविचारित,सुमधुर,
सुनियोजित, स्वच्छ प्रयास से
पुनः इसे तुम सम्पन्न करो।।

अजय कुमार पाण्डेय

हैदराबाद

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