क्या अर्पण कर दूँ
है पास मेरे क्या जो अर्पण कर दूँ
दिल को भावों का दर्पण कर दूँ ,
प्रतिबिंबित हो जिसमें जग सारा
पुरुष पुरातन मानस सारा ,
नाच रहा जिसमें हो अंबर
ऐसा भावों का दर्पण कर दूँ |
है पास मेरे क्या ..............||
तुम धनिकों के लोकतंत्र हो
मैं वंचित का मूक समर्थन ,
एक दृष्टि बीती पर डालो
अपने सब वादों को खंगालो||
प्रजातंत्र की चौखट पर
सौगंधों की माला फेरी ,
अब इतना उपकार करो फिर
उन सौगंधों को पूरा कर दो ||
है पास मेरे क्या.......||
पल पल विकल हो रहा जन गण मन
वचन भंग व्यवहारों से,
बिखर रहा है जनादेश अब
वारों से प्रतिकारों से ,
उन वारों को चिन्हित कर के
उनको आज कुपोषित कर दो ||
है पास मेरे क्या ...... ... ||
लोकतंत्र बलहीन हुआ है
कुछ बचकाने अभियानों से ,
शुचिता भी विक्षिप्त हुई है
कुछ मनमाने अरमानों से,
ऐसी समस्त क्रूर व्यवस्था का
सब मिलकर के तर्पण कर दो ||
है जन गण की यही भावना
कुछ नूतन परिवर्तन कर दो,
सदियों से पड़े रिक्त ह्रदय को
अविरल ऊर्जा से तुम भर दो |
अविरल ऊर्जा से तुम भर दो ||
है पास मेरे क्या जो अर्पण कर दूं
दिल को भावों का दर्पण कर दूं।।
अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
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