मत रोको मुझको

     मत रोको मुझको                                                     

आज कोई मत रोको मुझको
प्रभु चरणों में बिछ जाने दो,
शब्दों की सीमाएं छोड़ो
सब भावों को कह जाने दो।।

तुम गरिष्ठ पुंज हो, शिलाखंड हो
मैं चंचल इक बहता निर्झर,
आज कृपा बस इतनी कर दो
तल में अपनी बह जाने दो।।

तुम नव प्रभात हो, स्वर्ग स्नात हो
मैं किंचित इक दीप की बाती,
नव प्रभात के इस प्रभाव में
मुझको भी अब ढल जाने दो।।

तुम अन्तर्यामी जग के स्वामी
मैं बालक अबोध, अज्ञानी,
अपनी सत्संगति में रख लो
अशन, व्यसन सब त्यज जाने दो।।

मुक्ति बोध तुम, ज्ञान योग तुम
ध्यान योग तुम, भक्ति योग तुम,
दीन- हीन आसक्ति युक्त मैं
मुझे अपनी शरण में रम जाने दो।।

आज कोई मत रोको मुझको
मुझे प्रभु चरणों में बिछ जाने दो,
शब्दों की सीमाएं छोड़ो
सब भावों को कह जाने दो।।

अजय कुमार पाण्डेय

हैदराबाद


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