सफ़र

            सफर           


सूरज की पहली किरण जब 
ओस की बूंदों पर पड़ी
अलसाई बूंदें मोतियों सी चमक पड़ीं।
नभ में लालिमा आई, दिवस भी चल पड़ा
पक्षियों के कलरव से नभ गुंजित हुआ।
प्रकृति के इस खेल से मन प्रफुल्लित हुआ
लहराती, बलखाती ये नदियां
कल कल करते ये झरने
सुरम्य संगीत इनके मन को लगे हरने।
दिवस का ये सफर और भी आगे चला
नभ के आंचल से निकल 
सूर्य ने यौवन को छुआ।
किरणों के तेज से दिवस और प्रफुल्लित हुआ,
सूर्य यूँ चलता रहा, दिवस भी ढलता रहा।
दिन ढला सांझ हुई
रात की गहराइयों में, सूरज भी गुम हुआ
रात और काली हुई, ज़िंदगी भी कैद हुई।
पर वक्त का ये कारवां , अविरल यूँ चलता रहा।
वक्त को कैद करने है नही संभव कहीं
पुनः दिन निकला रात गई,
ज़िंदगी भी मुक्त हुई।।

अजय कुमार पाण्डेय

हैदराबाद


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